लेखनी प्रतियोगिता -15-Feb-2022 - बाज़ार
रिश्ते भरे बाजार में बिक रहे थे,
सब खड़े हुए बस देख रहे थे |
कोई बचाने की नहीं सोच रहा था,
मोल भाव रिश्ते का हो रहा था |
छोड़ घर आई थी कली साथ जिसके,
आज वही उसकी खाल नोंच रहा था |
हर कोई बेइंतहा जुल्म ढा रहा था,
निगाहों से ही जिस्म खरोंच रहा था |
बाजारों के ठेकेदारो से पूछो तो जरा,
रिश्तों की कीमत वो क्या दे रहा था |
जो रिश्ता बेमानी था इज़्ज़तदारों के लिए,
उसके लिए जिंदगी कोई अपनी दे रहा था |
बाज़ार में नीलाम हुई अस्मत जिसकी,
क्या उसका दर्द कोई समझ रहा था |
कालाबाज़ारी का खुला व्यापार था,
कोई जुएं में अपना सर्वस्व हार रहा था |
जामों का दौर चला जब महफ़िल में,
हर पैमाने से नशा ही नशा टपक रहा था |
खून का एक एक कतरा कीमती था जब,
कोई खून की चार गुना कीमत वसूल रहा था |
बाजारों में तो सभी कुछ बिकाऊ था दोस्तों,
कोई हम जैसा ही था जो सब खरीद रहा था |
प्रतियोगिता हेतु
शिखा अरोरा (दिल्ली)
Shrishti pandey
16-Feb-2022 12:26 PM
Very nice
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Punam verma
16-Feb-2022 09:05 AM
Nice
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Abhinav ji
16-Feb-2022 12:11 AM
बहुत खूबसूरत
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